सभ्यता के अरुणोदय से मानवीय समाज में भाषा सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र के रूप में अपनी उपयोगिता एवं महत्व को निरंतर सिद्ध करती रही है। असंख्य अन्वेषण और शोध के उपरान्त कोई भाषा समाज में अपना स्थान बनाती है। हिंदी भी कालचक्र के असंख्य थपेड़ों से लड़ते हुए आज यहां तक पहुंची है। भूमंडलीकरण के इस बाजारवादी दौर में भी हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है अपितु एक संपूर्ण संस्कृति है। हिंदी भविष्य की भाषा है और हमारी समृद्ध परम्पराओं, संस्कृति, साहित्य की वाहिनी भी है।
विश्व हिंदी साहित्य परिषद् इस बात के लिए वचनबद्ध है कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के उन्नयन एवं उत्कर्ष हेतु हमेशा खुला मंच प्रदान करती रहेगी। इन्हीं विचारों को गति प्रदान करने के लिए विश्व हिंदी साहित्य परिषद् देश में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन के लिए प्रयासरत है।
विश्व हिंदी साहित्य परिषद् इस बात के लिए वचनबद्ध है कि भाषा, साहित्य और संस्कृति के उन्नयन एवं उत्कर्ष हेतु हमेशा खुला मंच प्रदान करती रहेगी। इन्हीं विचारों को गति प्रदान करने के लिए विश्व हिंदी साहित्य परिषद् देश में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन के लिए प्रयासरत है।
विश्व हिंदी साहित्य परिषद् की स्थापना सन् 2011 में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के प्रति जागरुकता, विकास, विस्तार एवं प्रतिष्ठा हेतु की गयी।
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